और धीरे-धीरे करके जीवन के रंगमंच के सारे कलाकार चल | हिंदी कविता

"और धीरे-धीरे करके जीवन के रंगमंच के सारे कलाकार चले गए..... बस इस कहानी का आखिरी किरदार बनकर रह गया मैं अकेला... हुनर तो था लेकिन सहेजना ना आया... टूटा इस कदर की बिखरना ना आया...... तोहफे में मिली खुशियों को समेटना ना आया.... बिखरा इस कदर कि दोबारा खड़ा ना हो पाया..... लोग आते गए लोग जाते गए, हमेशा खुश रहने की आदत थी... लोगों ने भी अकेला छोड़ दिया यह कहकर कि .... तुम्हें तो बिन महफिल के भी खुश रहने की आदत है.... बस दो अनजान साथी ने आखिर तक मेरा साथ दिया... मेरी संगीत मेरी शायरी, मेरा जज्बा मेरा हौसला ऊपर वाले का रहम है जिंदा हूं मैं.... कुछ कराना चाहता है शायद मेरा कर्म है.... मेरी उम्मीद है उससे, तो उसकी कुछ आस है मुझसे... ना जाने कैसा अटूट बंधन है, ईश्वर और मेरा.... मेरे उससे मिलाने की जिद पूरी नहीं करता, फिर भी अनछूआ एहसास बनकर साथ देता है मेरा..... मेरा भूत वर्तमान और भविष्य है तू.... मैं कहीं नहीं पर तू हर पल साथ है.... तू ही तो है तभी तो मेरी बात है माना अकेला हूं यहां पर तू तो मेरे साथ है.... इस पल का यकीन तो दे, बहती हवाओं की तरह... मेरे हमदम मेरे हमराही साथ थोड़ा संगीन तो दे - ✍ ललित प्रेम ©Lalit Gunja"

 और धीरे-धीरे करके जीवन के रंगमंच के सारे कलाकार चले गए.....
बस इस कहानी का आखिरी किरदार बनकर रह गया मैं अकेला...
हुनर तो था लेकिन सहेजना ना आया...
टूटा इस कदर की बिखरना ना आया......
तोहफे में मिली खुशियों को समेटना ना आया....
बिखरा इस कदर कि दोबारा खड़ा ना हो पाया.....
लोग आते गए लोग जाते गए, हमेशा खुश रहने की आदत थी...
लोगों ने भी अकेला छोड़ दिया यह कहकर कि ....
तुम्हें तो बिन महफिल के भी खुश रहने की आदत है....
बस दो अनजान साथी ने आखिर तक मेरा साथ दिया...
मेरी संगीत मेरी शायरी, मेरा जज्बा मेरा हौसला
ऊपर वाले का रहम है जिंदा हूं मैं....
कुछ कराना चाहता है शायद मेरा कर्म है....
मेरी उम्मीद है उससे, तो उसकी कुछ आस है मुझसे... 
ना जाने कैसा अटूट बंधन है, ईश्वर और मेरा....
 मेरे उससे मिलाने की जिद पूरी नहीं करता, फिर भी अनछूआ एहसास बनकर साथ देता है मेरा.....
मेरा भूत वर्तमान और भविष्य है तू....
मैं कहीं नहीं पर तू हर पल साथ है....
तू ही तो है तभी तो मेरी बात है
माना अकेला हूं यहां पर तू तो मेरे साथ है....
इस पल का यकीन तो दे, बहती हवाओं की तरह...
मेरे हमदम मेरे हमराही साथ थोड़ा संगीन तो दे
- ✍ ललित प्रेम

©Lalit Gunja

और धीरे-धीरे करके जीवन के रंगमंच के सारे कलाकार चले गए..... बस इस कहानी का आखिरी किरदार बनकर रह गया मैं अकेला... हुनर तो था लेकिन सहेजना ना आया... टूटा इस कदर की बिखरना ना आया...... तोहफे में मिली खुशियों को समेटना ना आया.... बिखरा इस कदर कि दोबारा खड़ा ना हो पाया..... लोग आते गए लोग जाते गए, हमेशा खुश रहने की आदत थी... लोगों ने भी अकेला छोड़ दिया यह कहकर कि .... तुम्हें तो बिन महफिल के भी खुश रहने की आदत है.... बस दो अनजान साथी ने आखिर तक मेरा साथ दिया... मेरी संगीत मेरी शायरी, मेरा जज्बा मेरा हौसला ऊपर वाले का रहम है जिंदा हूं मैं.... कुछ कराना चाहता है शायद मेरा कर्म है.... मेरी उम्मीद है उससे, तो उसकी कुछ आस है मुझसे... ना जाने कैसा अटूट बंधन है, ईश्वर और मेरा.... मेरे उससे मिलाने की जिद पूरी नहीं करता, फिर भी अनछूआ एहसास बनकर साथ देता है मेरा..... मेरा भूत वर्तमान और भविष्य है तू.... मैं कहीं नहीं पर तू हर पल साथ है.... तू ही तो है तभी तो मेरी बात है माना अकेला हूं यहां पर तू तो मेरे साथ है.... इस पल का यकीन तो दे, बहती हवाओं की तरह... मेरे हमदम मेरे हमराही साथ थोड़ा संगीन तो दे - ✍ ललित प्रेम ©Lalit Gunja

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