हरी-भरी ये धरती प्यारी, फूलों से सजी बगिया न्यारी। | हिंदी कविता

"हरी-भरी ये धरती प्यारी, फूलों से सजी बगिया न्यारी। नीला अम्बर, सूरज की किरण, पंछियों की मीठी छवि न्यारी।नदी की बहती निर्मल धारा, पर्वत की ऊँची चोटी प्यारा। सांझ का सुंदर सजीव दृश्य, चाँदनी रात की शीतल छाया।वृक्षों की छाया, हवा की सरगम, बारिश की बूँदें, झरनों का संगम। प्रकृति का हर एक रूप निराला, इसमें बसी है सृष्टि की माया।धरती माँ का ये अनुपम उपहार, हम सबको इसे सहेजना है प्यार। प्रकृति के रंग में रंग जाना, इसका सौंदर्य हमें बचाना। ©Gobind Kumar"

 हरी-भरी ये धरती प्यारी, फूलों से सजी बगिया न्यारी। नीला अम्बर, सूरज की किरण, पंछियों की मीठी छवि न्यारी।नदी की बहती निर्मल धारा, पर्वत की ऊँची चोटी प्यारा। सांझ का सुंदर सजीव दृश्य, चाँदनी रात की शीतल छाया।वृक्षों की छाया, हवा की सरगम, बारिश की बूँदें, झरनों का संगम। प्रकृति का हर एक रूप निराला, इसमें बसी है सृष्टि की माया।धरती माँ का ये अनुपम उपहार, हम सबको इसे सहेजना है प्यार। प्रकृति के रंग में रंग जाना, इसका सौंदर्य हमें बचाना।

©Gobind Kumar

हरी-भरी ये धरती प्यारी, फूलों से सजी बगिया न्यारी। नीला अम्बर, सूरज की किरण, पंछियों की मीठी छवि न्यारी।नदी की बहती निर्मल धारा, पर्वत की ऊँची चोटी प्यारा। सांझ का सुंदर सजीव दृश्य, चाँदनी रात की शीतल छाया।वृक्षों की छाया, हवा की सरगम, बारिश की बूँदें, झरनों का संगम। प्रकृति का हर एक रूप निराला, इसमें बसी है सृष्टि की माया।धरती माँ का ये अनुपम उपहार, हम सबको इसे सहेजना है प्यार। प्रकृति के रंग में रंग जाना, इसका सौंदर्य हमें बचाना। ©Gobind Kumar

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