परेशां रहती हो मेरी उन्माद से
खामोश समंदर हो जाऊं क्या
बहता था तुम्हारी रगों में शान बनकर
आशमान का छोटा परिंदा हो जाऊं क्या
✍️ अमितेश निषाद
परेशां रहती हो मेरी उन्माद से
खामोश समंदर हो जाऊं क्या
बहता था तुम्हारी रगों में शान बनकर
आशमान का छोटा परिंदा हो जाऊं क्या