कोई उसे भी तो समझे, जो सबको समझाता है। उसके अपने भ | हिंदी कविता

"कोई उसे भी तो समझे, जो सबको समझाता है। उसके अपने भूखे न रहे, इसलिए ठंडा खाना खाता है।। अपनों की खुशियों के लिए, वह खुद को भूल जाता है। कुछ पैसे बचाने के लिए, रोजाना बस में धक्के खाता है।। जो कभी हर काम के लिए मां पर हुक्म चलाता था। आज वो चुपचाप खुद बनाकर खाता है।। वो लड़का है हंसते-हंसते, सारी जिम्मेदारी निभाता है। ©Vishal Garg Visarg"

 कोई उसे भी तो समझे, जो सबको समझाता है।
उसके अपने भूखे न रहे, इसलिए ठंडा खाना खाता है।।

अपनों की खुशियों के लिए, वह खुद को भूल जाता है।
कुछ पैसे बचाने के लिए, रोजाना बस में धक्के खाता है।।

जो कभी हर काम के लिए
मां पर हुक्म चलाता था।
आज वो चुपचाप खुद बनाकर खाता है।।

वो लड़का है हंसते-हंसते, सारी जिम्मेदारी निभाता है।

©Vishal Garg Visarg

कोई उसे भी तो समझे, जो सबको समझाता है। उसके अपने भूखे न रहे, इसलिए ठंडा खाना खाता है।। अपनों की खुशियों के लिए, वह खुद को भूल जाता है। कुछ पैसे बचाने के लिए, रोजाना बस में धक्के खाता है।। जो कभी हर काम के लिए मां पर हुक्म चलाता था। आज वो चुपचाप खुद बनाकर खाता है।। वो लड़का है हंसते-हंसते, सारी जिम्मेदारी निभाता है। ©Vishal Garg Visarg

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