White 2122 2122 2122 212
जाने कैसे जीते है अब लोग इस संसार मे
किससे में इंसाफ माँगू जाऊँ किस दरबार मे
कैसे कर लूँ मैं भरोसा अब किसी पे भी यहाँ
ठोकरें ही पाई है हमने सदा सत्कार में
हाले दिल किस से कहूँ मैं कौन है मेरा सनम
बिक रहा खूँ-ऐ-जिगर भी अब सरे बाजार में
कर दिया खुदसे जुदा दौलत के चाहत में हमे
घुट रही वो मुहब्बत चाँदी के उस दीवार में
जिस्म तो दो थे हमारे , रूह अपनी एक थी
देख ना पाया कभी वो ही मुझे किरदार में
आ गया फिर याद चुम्बन सर्द रातो में तेरा
जल रहे हम आज भी उस प्यार के बुखार में
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
2/11/2017
©laxman dawani
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