साड़ी में लिपटी हुई स्त्री… वो साड़ी में लिपटी हु | हिंदी Quote

"साड़ी में लिपटी हुई स्त्री… वो साड़ी में लिपटी हुई स्त्री, मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी , मुझसे रह न गया , मैंने कह ही दिया… तुम्हारा रूप, तुम्हारा रंग , तुम लिपटी हुई साड़ी में, कर देती हो मेरी शराफ़त को भंग । तुम्हारी पायलों की छनछनाहट , तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट , मुझे मजबूर करती है लिखने पर , तुम्हारी ये नटखट सी मुस्कराहट । तुम्हारे गजरे की महक , मुझे खींच लाती तुम्हारी ओर , तुम नहीं बोलती हो बेशक, निगाहें तुम्हारी दिल में मचातीं है शोर । मैं नहीं जानता तुम्हें, तुम अजनबी हो , न होकर भी , तुम हो मेरी कल्पनाओं के संग । तुम्हारा रूप... ©Ravindra Singh"

 साड़ी में लिपटी हुई स्त्री…

वो साड़ी में लिपटी हुई स्त्री,
मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी ,
मुझसे रह न गया ,
मैंने कह ही दिया…

तुम्हारा रूप,
तुम्हारा रंग ,
तुम लिपटी हुई साड़ी में,
कर देती हो मेरी शराफ़त को भंग ।

तुम्हारी पायलों की छनछनाहट ,
तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट ,
मुझे मजबूर करती है लिखने पर ,
तुम्हारी ये नटखट सी मुस्कराहट ।

तुम्हारे गजरे की महक ,
मुझे खींच लाती तुम्हारी ओर ,
तुम नहीं बोलती हो बेशक,
निगाहें तुम्हारी दिल में मचातीं है शोर ।

मैं नहीं जानता तुम्हें,
तुम अजनबी हो ,
न होकर भी ,
तुम हो मेरी कल्पनाओं के संग ।

तुम्हारा रूप...

©Ravindra Singh

साड़ी में लिपटी हुई स्त्री… वो साड़ी में लिपटी हुई स्त्री, मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी , मुझसे रह न गया , मैंने कह ही दिया… तुम्हारा रूप, तुम्हारा रंग , तुम लिपटी हुई साड़ी में, कर देती हो मेरी शराफ़त को भंग । तुम्हारी पायलों की छनछनाहट , तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट , मुझे मजबूर करती है लिखने पर , तुम्हारी ये नटखट सी मुस्कराहट । तुम्हारे गजरे की महक , मुझे खींच लाती तुम्हारी ओर , तुम नहीं बोलती हो बेशक, निगाहें तुम्हारी दिल में मचातीं है शोर । मैं नहीं जानता तुम्हें, तुम अजनबी हो , न होकर भी , तुम हो मेरी कल्पनाओं के संग । तुम्हारा रूप... ©Ravindra Singh

#lalishq साड़ी में लिपटी हुई स्त्री…

वो साड़ी में लिपटी हुई स्त्री,
मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी ,
मुझसे रह न गया ,
मैंने कह ही दिया…

तुम्हारा रूप,
तुम्हारा रंग ,
तुम लिपटी हुई साड़ी में,
कर देती हो मेरी शराफ़त को भंग ।

तुम्हारी पायलों की छनछनाहट ,
तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट ,
मुझे मजबूर करती है लिखने पर ,
तुम्हारी ये नटखट सी मुस्कराहट ।

तुम्हारे गजरे की महक ,
मुझे खींच लाती तुम्हारी ओर ,
तुम नहीं बोलती हो बेशक,
निगाहें तुम्हारी दिल में मचातीं है शोर ।

मैं नहीं जानता तुम्हें,
तुम अजनबी हो ,
न होकर भी ,
तुम हो मेरी कल्पनाओं के संग ।

तुम्हारा रूप,
तुम्हारा रंग ,
तुम लिपटी हुई साड़ी में,
कर देती हो मेरी शराफ़त को भंग ।

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