White शीर्षक --- पानी
स्वर्णिम नल शोभित घना,
रजत बूंद सम नीर।
कर मेघपुष्प से शीतल कंठ,
चिड़िया हुई गंभीर।
अंतस तक अमृत पहुंचा,
किया आनन्दित क्षीर।
झूमे ठंडक पा दल गौरैया,
कलम चली जैसे मीर।
बिन उदक विकल वसुधा,
बादल समझे पीर।
सागर से भर सलिल नयन,
बरस तोड़ते धीर।
सूर्य ताप प्रचंड हुआ,
धरती हुई अधीर।
जिसका पानी उतर गया,
जग में कौन अमीर।
पय प्रकृति का सार तत्व,
जीवन दाता वीर।
बिन पानी के प्राण तजे,
राजा रंक वज़ीर।
डॉ. भगवान सहाय मीना
बाड़ा पदमपुरा,जयपुर,राजस्थान।
©Dr. Bhagwan Sahay Meena
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