रंग मेहनत का हर किसी को रास नही आता दिल में गिरके | हिंदी शायरी

"रंग मेहनत का हर किसी को रास नही आता दिल में गिरके फिर उठने का विश्वास नही आता पैरों को आसमाँ में जमाए बैठा है वो शक़्स जो समंदर से पूछता है साहिल क्यों पास नही आता पतझड़ दुबक गई है गर्मी को दर पे आते देखकर तभी तो चर्ख पे सूरज पहले सा उदास नही आता सूने पड़े रहते है पन्ने इंसानों के दिलो से 'काफ़िर' और कलम की निगाहों में भी उल्लास नही आता #काफ़िर"

 रंग मेहनत का हर किसी को रास नही आता
दिल में गिरके फिर उठने का विश्वास नही आता   

पैरों को आसमाँ में जमाए बैठा है वो शक़्स जो
समंदर से पूछता है साहिल क्यों पास नही आता 

पतझड़ दुबक गई है गर्मी को दर पे आते देखकर
तभी तो चर्ख पे सूरज पहले सा उदास नही आता

सूने पड़े रहते है पन्ने इंसानों के दिलो से 'काफ़िर'
और कलम की निगाहों में भी उल्लास नही आता
#काफ़िर

रंग मेहनत का हर किसी को रास नही आता दिल में गिरके फिर उठने का विश्वास नही आता पैरों को आसमाँ में जमाए बैठा है वो शक़्स जो समंदर से पूछता है साहिल क्यों पास नही आता पतझड़ दुबक गई है गर्मी को दर पे आते देखकर तभी तो चर्ख पे सूरज पहले सा उदास नही आता सूने पड़े रहते है पन्ने इंसानों के दिलो से 'काफ़िर' और कलम की निगाहों में भी उल्लास नही आता #काफ़िर

#nojotohindi

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