"वे खेतों में भूख और शहरों में
अफ़वाहों के पुलिंदे फेंकते हैं
देश और धर्म और नैतिकता की
दुहाई देकर
कुछ लोगों की सुविधा
दूसरों की ‘हाय’ पर सेंकते हैं
उन्होंने किसी चीज़ को
सही जगह नहीं रहने दिया
न संज्ञा, न विशेषण, न सर्वनाम
एक समूचा और सही वाक्य
टूटकर ‘बि ख र’ गया है।" ( धूमिल )¹
©HintsOfHeart.
#बिखरती_व्यवस्था
1.सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' की कवितायें उस व्यवस्था को आइना दिखाती हैं, जिसने जनता को छला है।