सारस के कलम से काव्य पुस्पाजली.. #मेरे पिता "श्री

"सारस के कलम से काव्य पुस्पाजली.. #मेरे पिता "श्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्य जी। # सहज सरल इंसान थे ऐसे,कोई हो नहीं सकता उनके जैसा कर्म योगी संन्यासी जैसे, जीवन भर था वह हंस जैसे ----- धन सांचययी, मित भाषी मित व्ययी तेज दिमाग़ कुशाग्र बुद्धि गौ, लक्ष्मी की सेवा करते,हर शास्त्र का ज्ञाता द्विज ----- गीता, रामायण उनके स्वासो में, सुबह शाम बसे थे सदाचार सदव्याहर में,उनका कोई सानी नहीं था ----- अथाह प्रेम था उनका मेरे लिए, मै ना समझ उधमी पुत्र था कभी भी भूल कर भी मुझे एक क्षण भी वह मुझे भुला नहीं था ----- ©सारस(रमेश शर्मा)"

 सारस के कलम से काव्य पुस्पाजली..

#मेरे पिता "श्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्य जी। #


सहज सरल इंसान थे ऐसे,कोई हो नहीं सकता उनके जैसा
कर्म योगी संन्यासी जैसे, जीवन भर था वह हंस जैसे
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धन सांचययी, मित भाषी मित व्ययी
तेज दिमाग़ कुशाग्र बुद्धि
गौ, लक्ष्मी की सेवा करते,हर शास्त्र का ज्ञाता द्विज
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गीता, रामायण उनके स्वासो में, सुबह शाम बसे थे
सदाचार सदव्याहर में,उनका कोई सानी नहीं था
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अथाह प्रेम था उनका मेरे लिए, मै ना समझ उधमी पुत्र था
कभी भी भूल कर भी मुझे
एक क्षण भी वह मुझे भुला  नहीं था
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©सारस(रमेश शर्मा)

सारस के कलम से काव्य पुस्पाजली.. #मेरे पिता "श्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्य जी। # सहज सरल इंसान थे ऐसे,कोई हो नहीं सकता उनके जैसा कर्म योगी संन्यासी जैसे, जीवन भर था वह हंस जैसे ----- धन सांचययी, मित भाषी मित व्ययी तेज दिमाग़ कुशाग्र बुद्धि गौ, लक्ष्मी की सेवा करते,हर शास्त्र का ज्ञाता द्विज ----- गीता, रामायण उनके स्वासो में, सुबह शाम बसे थे सदाचार सदव्याहर में,उनका कोई सानी नहीं था ----- अथाह प्रेम था उनका मेरे लिए, मै ना समझ उधमी पुत्र था कभी भी भूल कर भी मुझे एक क्षण भी वह मुझे भुला नहीं था ----- ©सारस(रमेश शर्मा)

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