हर बार न यूँ ही बहलादो, चाहते हो क्या बतलादो । बोल

"हर बार न यूँ ही बहलादो, चाहते हो क्या बतलादो । बोलो आखिर कब तक हमको, ऐसे ही तांडव सहना है ।। हे! भारत के बेटे मुझको, बस तुझसे इतना कहना है । दुख कलरव करते रहते है, सन्ताप सुनाते तान यंहा। पीर उठ नित नव नर्तन करती, व्यथाएं गाती गान यंहा ।। पत्थरों के ही उपासक अब, पत्थर के हैं भगवान यंहा । लोहा ले बुराई घूमती, चुम्बक के है मकान यंहा ।। कितने हक़ उठ घुट मिटते पर, हम रहते उनको रटते पर । अल्पदृष्टि के गोचर सकल, किसको न दिखता किसान यंहा । सीमाओं की उथल पुथल में, और जो घायल जवान यंहा ।। पानी बन कर और ये खून, बोलो तो कब तक बहना है ।। हे! भारत के बेटे मुझको, बस तुझसे इतना कहना है।। सुनील आज़ाद"

 हर बार न यूँ ही बहलादो,
चाहते हो क्या बतलादो ।
बोलो आखिर कब तक हमको,
ऐसे ही तांडव सहना है ।।

हे! भारत के बेटे मुझको,
बस तुझसे इतना कहना है । 

दुख कलरव करते रहते है,
सन्ताप सुनाते तान यंहा।
पीर उठ नित नव नर्तन करती,
व्यथाएं गाती गान यंहा ।।

पत्थरों के ही उपासक अब,
पत्थर के हैं भगवान यंहा ।
लोहा ले बुराई घूमती,
चुम्बक के है मकान यंहा ।।

कितने हक़ उठ घुट मिटते पर,
हम रहते उनको रटते पर ।
अल्पदृष्टि के गोचर सकल,
किसको न दिखता किसान यंहा ।
सीमाओं की उथल पुथल में,
और जो घायल जवान यंहा ।।

पानी बन कर और ये खून,
बोलो तो कब तक बहना है ।।
हे! भारत के बेटे मुझको,
बस तुझसे इतना कहना है।।
        
   सुनील आज़ाद

हर बार न यूँ ही बहलादो, चाहते हो क्या बतलादो । बोलो आखिर कब तक हमको, ऐसे ही तांडव सहना है ।। हे! भारत के बेटे मुझको, बस तुझसे इतना कहना है । दुख कलरव करते रहते है, सन्ताप सुनाते तान यंहा। पीर उठ नित नव नर्तन करती, व्यथाएं गाती गान यंहा ।। पत्थरों के ही उपासक अब, पत्थर के हैं भगवान यंहा । लोहा ले बुराई घूमती, चुम्बक के है मकान यंहा ।। कितने हक़ उठ घुट मिटते पर, हम रहते उनको रटते पर । अल्पदृष्टि के गोचर सकल, किसको न दिखता किसान यंहा । सीमाओं की उथल पुथल में, और जो घायल जवान यंहा ।। पानी बन कर और ये खून, बोलो तो कब तक बहना है ।। हे! भारत के बेटे मुझको, बस तुझसे इतना कहना है।। सुनील आज़ाद

हर बार न यूँ ही बहलादो,
चाहते हो क्या बतलादो ।
बोलो आखिर कब तक हमको,
ऐसे ही तांडव सहना है ।।

हे! भारत के बेटे मुझको,
बस तुझसे इतना कहना है ।

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