* मिली है सजा मुझको ऐसी खता का, जिसका मुझे भी पता | हिंदी शायरी

"* मिली है सजा मुझको ऐसी खता का, जिसका मुझे भी पता ही नहीं है। बताए बिना कोई समझेगा कैसे, क्या बताना भी मुझको मुनासिब नहीं है। * ©नागेन्द्र किशोर सिंह"

 * मिली है सजा मुझको ऐसी खता का,
जिसका मुझे भी पता ही नहीं है।
बताए बिना कोई समझेगा कैसे,
क्या बताना भी मुझको मुनासिब नहीं है। *

©नागेन्द्र किशोर सिंह

* मिली है सजा मुझको ऐसी खता का, जिसका मुझे भी पता ही नहीं है। बताए बिना कोई समझेगा कैसे, क्या बताना भी मुझको मुनासिब नहीं है। * ©नागेन्द्र किशोर सिंह

# मिली है सजा#

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