"ग़म बहुत हैं मगर कोई चारा नहीं
ऐसे तो मेरा होना गुजारा नहीं
हाँ जी भरके उसे देखने वाला मैं
आँख भर देख ली वो हमारा नहीं
उम्र भर हम इसी ग़म में रोते रहे
हमकों हमदर्द का भी सहारा नहीं
ये अदा तेरी आफ़त से कम तो नहीं
हाँ मगर इससे दिलकश नजारा नहीं
हमकों उनसे तसल्ली मिली भी तो ये
दिल किसी को भी देना दुबारा नहीं
आज दुल्हन बनी हैं किसी और की
कहती थी जो, कोई तुमसे प्यारा नहीं
जागों "गोविन्द" प्यारे चलो जागों अब
मोह-माया का कोई किनारा नहीं
©govind kumar"