कहाँ- कहाँ समेटूँ तुझे ऐ ज़िंदगी, जिधर भी देखु तू | हिंदी शायरी

"कहाँ- कहाँ समेटूँ तुझे ऐ ज़िंदगी, जिधर भी देखु तू बस बिखरी पड़ी है। ©Mahendrasinh(Mahi)"

 कहाँ- कहाँ समेटूँ तुझे ऐ ज़िंदगी,

जिधर भी देखु तू बस बिखरी पड़ी है।

©Mahendrasinh(Mahi)

कहाँ- कहाँ समेटूँ तुझे ऐ ज़िंदगी, जिधर भी देखु तू बस बिखरी पड़ी है। ©Mahendrasinh(Mahi)

कहाँ- कहाँ समेटूँ तुझे ऐ ज़िंदगी,

जिधर भी देखु तू बस बिखरी पड़ी है।

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