एक शाम हथेली पर रख कर भूल गए, हम इस बार जो सम्भाले

"एक शाम हथेली पर रख कर भूल गए, हम इस बार जो सम्भाले तो बिखरना भूल गए रूठी है माँ मुझसे इतने दिनों से, कहती है तुम बड़े क्या हुए मुस्कुराना भूल गए ये पिछले कुछ दिनों की बात है, हम अलार्म लगाकर नींद को बुलाना भूल गए जेबों में सिक्कों की खनक तो भर ली हमने, मगर खुशियों को संग लाना भूल गए सूरज क्या निकल आया छत पर हमारे, हम तो चांद तारों को भी भूल गए मौत आई है चौखट पर आज हमारे, हम उसे गले लगाकर इस जहां को ही भूल गए"

 एक शाम हथेली पर रख कर भूल गए,
हम इस बार जो सम्भाले तो बिखरना भूल गए

रूठी है माँ मुझसे इतने दिनों से,
कहती है तुम बड़े क्या हुए मुस्कुराना भूल गए

ये पिछले कुछ दिनों की बात है,
हम अलार्म लगाकर नींद को बुलाना भूल गए

जेबों में सिक्कों की खनक तो भर ली हमने, 
मगर खुशियों को संग लाना भूल गए 

सूरज क्या निकल आया छत पर हमारे, 
हम तो चांद तारों को भी भूल गए 

मौत आई है चौखट पर आज हमारे, 
हम उसे गले लगाकर इस जहां को ही भूल गए

एक शाम हथेली पर रख कर भूल गए, हम इस बार जो सम्भाले तो बिखरना भूल गए रूठी है माँ मुझसे इतने दिनों से, कहती है तुम बड़े क्या हुए मुस्कुराना भूल गए ये पिछले कुछ दिनों की बात है, हम अलार्म लगाकर नींद को बुलाना भूल गए जेबों में सिक्कों की खनक तो भर ली हमने, मगर खुशियों को संग लाना भूल गए सूरज क्या निकल आया छत पर हमारे, हम तो चांद तारों को भी भूल गए मौत आई है चौखट पर आज हमारे, हम उसे गले लगाकर इस जहां को ही भूल गए

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