कुछ दर्द छुपा आपका
कुछ मेरी हँसी...
बचपन में.. मैं जब
स्कूल जाता था, और आप बाजार
मुझे इंतजार था....
बाज़ार से मेरे लिए कुछ लाने का
वो इंतजार वाक़ई सुबह से शाम तक
करता था मैं.. मैंने जो कहा
आपने सब किया चाहे आप कितने
मजबूर क्यों न रहे..
अफ़सोस.. आपकी भी हमसे
कुछ उम्मीदें होंगीं लेकिन
उनको अपने लफ्जों मे
आपने कभी बयां नहीं किया
एक बेटा अपने पिता के जितना
विशाल हृदय बने इतना तो
आप सिखाए कितने ज़ख्म
मैंने आपको अपनी वाणी,
से दिए होंगे गम्भीर आप थे
कभी किसी से बयां ना कर पाए
कुछ दर्द छुपा आपका....
कुछ मेरी हंसी.. बस इतनी ....
कमी रही बस आपके एक थप्पड़ की कभी तो गुस्से से मार दिया होता.....
प्रणाम, विशाल हृदय पिता को
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