अंधेरे से तो में अभी भी डरती हुं मां।। पर जिदंगी क | हिंदी कविता

"अंधेरे से तो में अभी भी डरती हुं मां।। पर जिदंगी की इस अंजान सहर में कभी कभी इतना अकेला पड़ जाता हूं की तुमको बि पुकराता नही हूं में मां।। क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।। खपा तो में तुमसे छोटी छोटी बातो से बि हो जाता हूं।। पर जिंदगी से में क्या भी खपा करू,जिसका कोई कीमत भी नही ही, पर खुदको मना लेती हू में मां।। क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।। चलना तो तुमने सिखाया था,तुम्हारा हात पकड़ के।। पर जिंदगी की कांटो की रास्तों पे अकेला चलना सीख गई हूं में मां।। क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।। ©💞Tapaswini 💞"

 अंधेरे से तो में अभी भी डरती हुं मां।।
पर जिदंगी की इस अंजान सहर में कभी कभी इतना अकेला पड़ जाता हूं की तुमको बि पुकराता नही हूं में मां।।
क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।।
खपा तो में तुमसे छोटी छोटी बातो से बि हो जाता हूं।।
पर जिंदगी से में क्या भी खपा करू,जिसका कोई कीमत भी नही ही, पर खुदको मना लेती हू में मां।।
क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।।
चलना तो तुमने सिखाया था,तुम्हारा हात पकड़ के।।
पर जिंदगी की कांटो की रास्तों पे अकेला चलना सीख गई हूं में मां।। 
क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।।

©💞Tapaswini 💞

अंधेरे से तो में अभी भी डरती हुं मां।। पर जिदंगी की इस अंजान सहर में कभी कभी इतना अकेला पड़ जाता हूं की तुमको बि पुकराता नही हूं में मां।। क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।। खपा तो में तुमसे छोटी छोटी बातो से बि हो जाता हूं।। पर जिंदगी से में क्या भी खपा करू,जिसका कोई कीमत भी नही ही, पर खुदको मना लेती हू में मां।। क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।। चलना तो तुमने सिखाया था,तुम्हारा हात पकड़ के।। पर जिंदगी की कांटो की रास्तों पे अकेला चलना सीख गई हूं में मां।। क्युकी तेरी बेटी अब बड़ी हो गई हे।। ©💞Tapaswini 💞

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