अलग अलग प्रकार के व्यंजन जो तु मंहगे-मंहगे होटलों | हिंदी कविता Video

"अलग अलग प्रकार के व्यंजन जो तु मंहगे-मंहगे होटलों में खाता है हमें देखकर जो तु घिन्नाता है उगाते है उन फसलों को ये घिन्नौने हाथ ही तो बता न इन घिन्नौने हाथों पर अभिमान क्यों न हो? बड़े- बडे मकानों में जो तु आराम फर्माता है देख हमारी झोपड़ी जो तु इसे धब्बा बताता है बनाते हैं उन मकानों को ये धब्बिले हाथ ही तो बता न इन धब्बिले हाथों पर अभिमान क्यों न हो? मंहगे मंहगे कपड़े पहन जो तु इठलाता है देख मैले कुच्चे कपडो को हमारी जो तु निच दृष्टि डालता है बुनते है उन कपडो को ये मैले कुचले हाथ ही तो बता न इन मैले कुचले हाथों पर अभिमान क्यों न हो? तेरा पेट भरते है तुझे स्वच्छ, स्वस्थ्य रखते हैं महलों में बिठा तुझे , खुद झोपड़ी में रहते हैं गाड़ी में बिठा तुझे, खुद पैदल ही चलते हैं खुदपर अभिमान करते नहीं        लेकिन तुम भी सम्मान करते नहीं तुम्हारी नजरों में जब हमारा सम्मान नही तो बता अभिमान क्यों नहीं? ©कलम की दुनिया "

अलग अलग प्रकार के व्यंजन जो तु मंहगे-मंहगे होटलों में खाता है हमें देखकर जो तु घिन्नाता है उगाते है उन फसलों को ये घिन्नौने हाथ ही तो बता न इन घिन्नौने हाथों पर अभिमान क्यों न हो? बड़े- बडे मकानों में जो तु आराम फर्माता है देख हमारी झोपड़ी जो तु इसे धब्बा बताता है बनाते हैं उन मकानों को ये धब्बिले हाथ ही तो बता न इन धब्बिले हाथों पर अभिमान क्यों न हो? मंहगे मंहगे कपड़े पहन जो तु इठलाता है देख मैले कुच्चे कपडो को हमारी जो तु निच दृष्टि डालता है बुनते है उन कपडो को ये मैले कुचले हाथ ही तो बता न इन मैले कुचले हाथों पर अभिमान क्यों न हो? तेरा पेट भरते है तुझे स्वच्छ, स्वस्थ्य रखते हैं महलों में बिठा तुझे , खुद झोपड़ी में रहते हैं गाड़ी में बिठा तुझे, खुद पैदल ही चलते हैं खुदपर अभिमान करते नहीं        लेकिन तुम भी सम्मान करते नहीं तुम्हारी नजरों में जब हमारा सम्मान नही तो बता अभिमान क्यों नहीं? ©कलम की दुनिया

#अभिमान क्यों न हो

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