कहमुकरी छंद नहीं   मिलें    तब,   याद   सताए।

"कहमुकरी छंद नहीं   मिलें    तब,   याद   सताए। मिलने    पर   दिल,  भी  घबराए।। करना   चाहूं,  सब    कुछ अर्पण। क्या सखि साजन,ना सखि दर्पण।। ©राजीव भारती "

कहमुकरी छंद नहीं   मिलें    तब,   याद   सताए। मिलने    पर   दिल,  भी  घबराए।। करना   चाहूं,  सब    कुछ अर्पण। क्या सखि साजन,ना सखि दर्पण।। ©राजीव भारती

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#राजीव भारती

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