White विषादों से घिरा मानव, नाम चाहिए, पैसा चाहिये | हिंदी Poetry

"White विषादों से घिरा मानव, नाम चाहिए, पैसा चाहिये, सब से ऊँचा जीवन चाहिये, आधुनिकता के नाम पर, नैतिक या अनैतिक ढंग से, एक दूसरे को ठगकर। हर तरफ लगी है एक दौड़, ऊपर उठने की मची होड़, धक्का मुक्की का नया दौर, पनपी शहरों में भागदौड़। निकल गया कोई आगे, रह जाये जो पीछे, विषादों में हार मान, विकारों में परेशान। नशे की लत पालते, गुम हो जाती सुध, निंद्रा में रहते बेसुध, हो दुनिया से बेख़बर, झूठी आत्म तृप्ति में, काल मे खो जाते। कौन उन्हें समझ पाया, अच्छा खासा व्यक्ति, मानसिक रोग से पीड़ित, किस को भाया। दुनिया कब देती है, हारे हुए का साथ, खो जाता आत्मविश्वास, घेर लेती निराशा, जीवन बन जाता अवसाद। ©Rishi Ranjan"

 White विषादों से घिरा मानव,
नाम चाहिए, पैसा चाहिये,
सब से ऊँचा जीवन चाहिये,
आधुनिकता के नाम पर,
नैतिक या अनैतिक ढंग से,
एक दूसरे को ठगकर।
हर तरफ लगी है एक दौड़,
ऊपर उठने की मची होड़,
धक्का मुक्की का नया दौर,
पनपी शहरों में भागदौड़।
निकल गया कोई आगे,
रह जाये जो पीछे,
विषादों में हार मान,
विकारों में परेशान।
नशे की लत पालते,
गुम हो जाती सुध,
निंद्रा में रहते बेसुध,
हो दुनिया से बेख़बर,
झूठी आत्म तृप्ति में,
काल मे खो जाते।
कौन उन्हें समझ पाया,
अच्छा खासा व्यक्ति,
मानसिक रोग से पीड़ित,
किस को भाया।
दुनिया कब देती है,
हारे हुए का साथ,
खो जाता आत्मविश्वास,
घेर लेती निराशा,
जीवन बन जाता अवसाद।

©Rishi Ranjan

White विषादों से घिरा मानव, नाम चाहिए, पैसा चाहिये, सब से ऊँचा जीवन चाहिये, आधुनिकता के नाम पर, नैतिक या अनैतिक ढंग से, एक दूसरे को ठगकर। हर तरफ लगी है एक दौड़, ऊपर उठने की मची होड़, धक्का मुक्की का नया दौर, पनपी शहरों में भागदौड़। निकल गया कोई आगे, रह जाये जो पीछे, विषादों में हार मान, विकारों में परेशान। नशे की लत पालते, गुम हो जाती सुध, निंद्रा में रहते बेसुध, हो दुनिया से बेख़बर, झूठी आत्म तृप्ति में, काल मे खो जाते। कौन उन्हें समझ पाया, अच्छा खासा व्यक्ति, मानसिक रोग से पीड़ित, किस को भाया। दुनिया कब देती है, हारे हुए का साथ, खो जाता आत्मविश्वास, घेर लेती निराशा, जीवन बन जाता अवसाद। ©Rishi Ranjan

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