दुनिया
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दुनिया के बाज़ार में दुकां देखा मकां देखा इंसानियत की पनाह देखी हैवानियत बेपनाह देखा
रूह काँप जाए वो ठोकर देखी किसी को किसी का होते देखा और सब कुछ खोते देखा कभी इंसां को ख़ुदा होते देखा किसी को गुनाह के बीज बोते देखा
कहीं हद पार करती सरहदें देखी किसी को दबते और दबाते देखा किसी ने तलब से किसी ने मतलब से देखा
मामूली काम से एक मुक़ाम तक का सफर देखा
कभी गिरते और गिराते देखा शर्मसार कर दे वो मंज़र भी तमाम देखा
ग़रीब के ज़हन में अमीरी की लक़ीर देखी अमीरी की सोहबत में फ़क़ीर देखा ख़ुदा की नेमत को इंसानी तराजू में तौलते देखा नफा-नुक़सान की भट्टी में खौलते देखा
चारों पहर साँस का ज़िंदगी पर पहरेदारी देखी दुनियाभर में ख़ुदा की कारीगरी और ज़िंदगी गढ़ते कलाकार की कलाकारी देखी
मनीष राज
©Manish Raaj
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