वक्त की कसौटियां कुछ राज कहती हैं,
जुदा अल्फाज़ पर भी कभी नाज करती हैं,
ये समा ये घड़ी ये परवाना भी अजीब है,
जो कभी हसरत ए नाकाम करती है,
तू सोच ले इत्मीनान से ओ वक्त के राही,
हर घड़ी ही नहीं चलेगी तेरी यहां मन मर्जी।
सुनील माहेश्वरी
©Sunil Maheshwari
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