मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल। | हिंदी Poetry Video

"मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल। मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल। जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार। अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार। Atal Bihari Vajpayee ©wordsbyvaani "

मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल। मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल। जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार। अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार। Atal Bihari Vajpayee ©wordsbyvaani

Atal Bihari Vajpayee
#kohra

People who shared love close

More like this

Trending Topic