ज़िन्दगी की तबीयत कुछ यूं बिगड़ी है, कि कोई दवा ,म

"ज़िन्दगी की तबीयत कुछ यूं बिगड़ी है, कि कोई दवा ,मरहम भी ना लगती है, क्या करे ये मरीज़ अकेला , जिसे सारी बीमारियां अपनी सी लगती है।"

 ज़िन्दगी की तबीयत कुछ यूं बिगड़ी है,
कि कोई दवा ,मरहम भी ना लगती है,
क्या करे ये मरीज़ अकेला ,
जिसे सारी बीमारियां अपनी सी लगती है।

ज़िन्दगी की तबीयत कुछ यूं बिगड़ी है, कि कोई दवा ,मरहम भी ना लगती है, क्या करे ये मरीज़ अकेला , जिसे सारी बीमारियां अपनी सी लगती है।

ज़िन्दगी की तबीयत कुछ यूं बिगड़ी है,
कि कोई दवा ,मरहम भी ना लगती है,
क्या करे ये मरीज़ अकेला ,
जिसे सारी बीमारियां अपनी सी लगती है।

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