फ़ख़्र महसूस करेंगे कर रावण का दहन, पाप का अंत होगा | हिंदी कविता

"फ़ख़्र महसूस करेंगे कर रावण का दहन, पाप का अंत होगा कब तक चलेगा ये वहम। आजकल चारों ओर जीते जागते जो रावण हैं, इनके आगे फ़ीके महिषासुर जैसे दानव हैं। ख़ुद के पापों का दहन नहीं कर उसे संरक्षण देते हैं, फ़िर भी बात-बात पर जय श्री राम बड़े गर्व से कहते हैं। मासूम बच्चियों के जिस्म को बड़ी बेरहमी से खरोचतें हैं, दुनिया के सामने फिर सद्चरित्र का चोला ओढ़ घूमते हैं। जिधर देखो उधर भ्रष्टाचार व आतंक का साया हैं, फिर भी उस रावण के दहन की हिम्मत कहाँ से तू लाया हैं। ऐसे कलयुगी रावणों का संहार करने कौन आयेगा, कब इस धरा का उद्धार हो राम राज्य बन पायेगा।"

 फ़ख़्र महसूस करेंगे कर रावण का दहन,
पाप का अंत होगा कब तक चलेगा ये वहम।

आजकल चारों ओर जीते जागते जो रावण हैं,
इनके आगे फ़ीके महिषासुर जैसे दानव हैं।

ख़ुद के पापों का दहन नहीं कर उसे संरक्षण देते हैं,
फ़िर भी बात-बात पर जय श्री राम बड़े गर्व से कहते हैं।

मासूम बच्चियों के जिस्म को बड़ी बेरहमी से खरोचतें हैं,
दुनिया के सामने फिर सद्चरित्र का चोला ओढ़ घूमते हैं।

जिधर देखो उधर भ्रष्टाचार व आतंक का साया हैं,
फिर भी उस रावण के दहन की हिम्मत कहाँ से तू लाया हैं।

ऐसे कलयुगी रावणों का संहार करने कौन आयेगा,
कब इस धरा का उद्धार हो राम राज्य बन पायेगा।

फ़ख़्र महसूस करेंगे कर रावण का दहन, पाप का अंत होगा कब तक चलेगा ये वहम। आजकल चारों ओर जीते जागते जो रावण हैं, इनके आगे फ़ीके महिषासुर जैसे दानव हैं। ख़ुद के पापों का दहन नहीं कर उसे संरक्षण देते हैं, फ़िर भी बात-बात पर जय श्री राम बड़े गर्व से कहते हैं। मासूम बच्चियों के जिस्म को बड़ी बेरहमी से खरोचतें हैं, दुनिया के सामने फिर सद्चरित्र का चोला ओढ़ घूमते हैं। जिधर देखो उधर भ्रष्टाचार व आतंक का साया हैं, फिर भी उस रावण के दहन की हिम्मत कहाँ से तू लाया हैं। ऐसे कलयुगी रावणों का संहार करने कौन आयेगा, कब इस धरा का उद्धार हो राम राज्य बन पायेगा।

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