वफ़ा की उड़ाई है चादर खुले आसमान में, देखो कि फिर क | हिंदी शायरी

"वफ़ा की उड़ाई है चादर खुले आसमान में, देखो कि फिर कहीं ओले ना पड़ जाएँ! ©viJAY"

 वफ़ा की उड़ाई है चादर खुले आसमान में,

देखो कि फिर कहीं ओले ना पड़ जाएँ!

©viJAY

वफ़ा की उड़ाई है चादर खुले आसमान में, देखो कि फिर कहीं ओले ना पड़ जाएँ! ©viJAY

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