आईना देखकर
बहुत दिनों बाद मन में सवाल आया
पहले मैं कैसा था ये सवाल इस बार आया।
चला गया देखने ख़ुद को आईना में
पहले कुछ और अब मैं कुछ अलग पाया।
मासूम सा चेहरा, चेहरे में मुश्कान थी
अब मैं पहले जैसे ख़ुद को नहीं पाया।
अब हैं तो चेहरे में किसी की कमी
अब मैंने ख़ुद को अकेला पाया।
नहीं थी पहले पैसे कमाने की जरूरत
सब कुछ आसानी से मिल जाता था
अब तो मैं बस नौकरी कर के चंद
पैसे बस है कमाया।
नहीं है वक्त सुकूं से आईना देखने को भी
आईना ही है अब मेरी औकात दिखा पाया।
क्या था मैं, कितना बदल गया इस वक्त
की रफ्तार में ये मैं समझ नहीं पाया।
ख़ुद को कितना बदला ये बस मुझे
आईना देखकर समझ पाया।
©Er Manish Prajapati
आईना देखकर
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