अंजाम दिल की बातों का,अस्त करता रहा ख़्वाबों को..!
मोहब्बत में लिखे प्रेम पत्रों के,मिलते हुए जवाबों को..!
टूटती उम्मीदें बहा ले जाती,ख़्वाहिशों के तालाबों को..!
कुचलते रहे वो महकती,इच्छाओं के गुलाबों को..!
रोक न पाए फिर भी हमारे,हिम्मत के सैलाबों को..!
पढ़ न सके तुम पर लिखी,अनगिनत इश्क़ की किताबों को..!
मयख़ाने के गुज़रे जमानों में,घुलती हुई शराबों को..!
उतरे मन से जो कभी फिर,चढ़ न सके नकाबों को..!
पसंद आये न कर्म हमारे,फिर भी जीवन के सबाबों को..!
रोक सका न कोई भी कभी,हवा से तीव्र उकाबों को..!
©SHIVA KANT(Shayar)
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