उठा सवेरे देख कर मैं। उषाकाल का समय रहा । झिलमिल क

"उठा सवेरे देख कर मैं। उषाकाल का समय रहा । झिलमिल करते देख पल्लव को। ऐंसा समय और कहां । तभी मन को एक चिन्तन भाया। उठा कलम और कागज को। छोटा सा ये खेत मेरा। कलम से हल इसमे लगया। बोया मन के बीजों को। तनिक निकला सूरज धरा मै । मन मुग्ध हुआ मन चिंतन से थोड़ा। रचित रचना का निर्माण हुआ। तनिक रचना निहारी मैंने। अपने फितरत को कायम किया। आंखें खोली मन चिन्तन से। देखा नया सवेरा हुआ।"

 उठा सवेरे देख कर मैं।
उषाकाल का समय रहा ।
झिलमिल करते देख पल्लव को।
ऐंसा समय और कहां ।

तभी मन को एक चिन्तन भाया।
उठा कलम और कागज को।
छोटा सा ये खेत मेरा।
कलम से हल इसमे लगया।

बोया मन के बीजों को।
तनिक निकला सूरज धरा मै ।
मन मुग्ध हुआ मन चिंतन से थोड़ा।
रचित रचना का निर्माण हुआ।

तनिक रचना निहारी मैंने।
अपने फितरत को कायम किया।
आंखें खोली मन चिन्तन से।
देखा नया सवेरा हुआ।

उठा सवेरे देख कर मैं। उषाकाल का समय रहा । झिलमिल करते देख पल्लव को। ऐंसा समय और कहां । तभी मन को एक चिन्तन भाया। उठा कलम और कागज को। छोटा सा ये खेत मेरा। कलम से हल इसमे लगया। बोया मन के बीजों को। तनिक निकला सूरज धरा मै । मन मुग्ध हुआ मन चिंतन से थोड़ा। रचित रचना का निर्माण हुआ। तनिक रचना निहारी मैंने। अपने फितरत को कायम किया। आंखें खोली मन चिन्तन से। देखा नया सवेरा हुआ।

#रचना का समय

#DawnSun

People who shared love close

More like this

Trending Topic