बचपन में नहीं होती थी हमारे पास पेंसिल पर हाँ मि

"बचपन में नहीं होती थी हमारे पास पेंसिल पर हाँ मिट्टी का घर बना लेते थे नहीं होता था रबड़ फिर भी गलतियाँ करते थे बेखौफ नहीं होती थी कॉपी पर दादी कहानी सुनाया करती थी नहीं होता था ये भारी बैग पर थे मोहल्ले में ढेर सारे दोस्त मनोरंजन के लिए नहीं होते थे टीवी मोबाइल पर मेले के खिलौने रात में भी सिरहाने रख सो जाया करते थे लेकिन मैं उलझन में हूँ अगर हमारे पास भी होते इस उम्र में सिर्फ पेंसिल,कॉपी,रबड़ शार्पनर ,मोबाइल,टीवी और किताबों से भरा भारी बैग तो क्या हम होते जो हैं उस से बेहतर या तीन वर्ष की उम्र में ही ये बच्चे खो रहे हैं अपना वो बचपन जिसे हम जी चुके हैं एक बचपन को उसके स्वभाव के अनुसार 🖋️🖋️🖋️....राज"

 बचपन में 
नहीं होती थी हमारे पास
पेंसिल पर हाँ 
मिट्टी का घर बना लेते थे 
नहीं होता था रबड़
फिर भी गलतियाँ करते थे बेखौफ
नहीं होती थी कॉपी 
पर दादी कहानी सुनाया करती थी
नहीं होता था ये भारी बैग 
पर थे मोहल्ले में ढेर सारे दोस्त
मनोरंजन के लिए 
नहीं होते थे टीवी मोबाइल
पर मेले के खिलौने 
रात में भी सिरहाने रख
सो जाया करते थे 
लेकिन मैं उलझन में हूँ 
अगर हमारे पास भी होते 
इस उम्र में 
सिर्फ पेंसिल,कॉपी,रबड़
शार्पनर ,मोबाइल,टीवी
और किताबों से भरा भारी बैग 
तो क्या हम होते 
जो हैं उस से बेहतर
या तीन वर्ष की उम्र में ही
ये बच्चे खो रहे हैं 
अपना वो बचपन जिसे 
हम जी चुके हैं 
एक बचपन को 
उसके स्वभाव के अनुसार
🖋️🖋️🖋️....राज

बचपन में नहीं होती थी हमारे पास पेंसिल पर हाँ मिट्टी का घर बना लेते थे नहीं होता था रबड़ फिर भी गलतियाँ करते थे बेखौफ नहीं होती थी कॉपी पर दादी कहानी सुनाया करती थी नहीं होता था ये भारी बैग पर थे मोहल्ले में ढेर सारे दोस्त मनोरंजन के लिए नहीं होते थे टीवी मोबाइल पर मेले के खिलौने रात में भी सिरहाने रख सो जाया करते थे लेकिन मैं उलझन में हूँ अगर हमारे पास भी होते इस उम्र में सिर्फ पेंसिल,कॉपी,रबड़ शार्पनर ,मोबाइल,टीवी और किताबों से भरा भारी बैग तो क्या हम होते जो हैं उस से बेहतर या तीन वर्ष की उम्र में ही ये बच्चे खो रहे हैं अपना वो बचपन जिसे हम जी चुके हैं एक बचपन को उसके स्वभाव के अनुसार 🖋️🖋️🖋️....राज

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