दोहा :- देख सुदामा की दशा , नगर लोग बेहाल । झर-झर | हिंदी कविता

"दोहा :- देख सुदामा की दशा , नगर लोग बेहाल । झर-झर झरते नीर से , पग धुलते गोपाल ।। देख सुदामा यह भवन , हुए बहुत भयभीत । कैसे पहरेदार से , कहूँ कृष्ण हैं मीत ।। करते बातें लोग है , आज सुदामा देख । आये दर पे श्याम के , बदलेंगे वो रेख  ।। शयन कक्ष बैठा दिया, मित्र सुदामा देख । नयन नयन पढ़ने लगे , देखो विधि की रेख ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 दोहा :-
देख सुदामा की दशा , नगर लोग बेहाल ।
झर-झर झरते नीर से , पग धुलते गोपाल ।।

देख सुदामा यह भवन , हुए बहुत भयभीत ।
कैसे पहरेदार से , कहूँ कृष्ण हैं मीत ।।

करते बातें लोग है , आज सुदामा देख ।
आये दर पे श्याम के , बदलेंगे वो रेख  ।।

शयन कक्ष बैठा दिया, मित्र सुदामा देख ।
नयन नयन पढ़ने लगे , देखो विधि की रेख ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- देख सुदामा की दशा , नगर लोग बेहाल । झर-झर झरते नीर से , पग धुलते गोपाल ।। देख सुदामा यह भवन , हुए बहुत भयभीत । कैसे पहरेदार से , कहूँ कृष्ण हैं मीत ।। करते बातें लोग है , आज सुदामा देख । आये दर पे श्याम के , बदलेंगे वो रेख  ।। शयन कक्ष बैठा दिया, मित्र सुदामा देख । नयन नयन पढ़ने लगे , देखो विधि की रेख ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :-
देख सुदामा की दशा , नगर लोग बेहाल ।
झर-झर झरते नीर से , पग धुलते गोपाल ।।

देख सुदामा यह भवन , हुए बहुत भयभीत ।
कैसे पहरेदार से , कहूँ कृष्ण हैं मीत ।।

करते बातें लोग है , आज सुदामा देख ।

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