हमारे पालन-पोषण, विकास और कल्याण के लिए हमारे पूर्वज अपना सर्वस्व दान कर देते हैं। उन सभी पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करना चाहिए और सच यह है कि हम सब कुछ बदल सकते हैं, लेकिन अपने पूर्वज या बड़े बुजुर्ग नहीं। हमको यह भी जान और समझ लेना चाहिए कि जिस परिवार में बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता उस परिवार में सुख, संतुष्टि और स्वाभिमान कभी भी नहीं आ सकता। हमारे बड़े बुज़ुर्ग हमारा स्वाभिमान और हमारी धरोहर हैं। उन्हें पुष्पित पल्लवित करने और सहेजने की जरूरत है। यदि हम परिवार में स्थायी सुख, शांति और समृध्दि चाहते हैं तो परिवार में बुजुर्गों का सम्मान करें, लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि समाज में निरंतर हो रहे परिवर्तन से कभी हमारे परिवार की शान कहे जाने वाले हमारे बड़े-बुजुर्ग आज परिवार में अपने ही अस्तित्व को तलाशते नजर आ रहे हैं। तिनका-तिनका जोड़कर अपने बच्चों के लिए आशियाना बनाने वाले ये पुरानी पीढ़ी के लोग अब खुद आशियाने की तलाश में दरबदर भटक रहे हैं।
©Ritesh Jackson
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