ज़िंदा हूँ ज़िन्दान में और सलाखें सामने हालातो की हैं
देख लेना तुम ये मजबूरी की दीवारे बस चंद रातो की है।
तू जिस्म को तो रोक लेगा रूह तो फिर भी बच जाएगी
वही रूह जिस पर लगी सारी चोटें तेरे विश्वासघातों की है।
चाहूं तो तेरी तरह तोड़ दू मैं भी जिम्मेदारियों की जंजीरों को
करता नही फिर भी क्योंकि बनी ये जंजीरे रिश्ते नातों की हैं।
मिटा दिए हो भले ही तूने अक्स मेरे दिल की दीवारों से
छत पर तो अब भी लिखी दास्तान मेरे जज्बातों की हैं।
मत डराया करो यूँ रोज 'काफ़िर' को ख़ुदा के नाम से तुम
जब खुद ही ये खुदाई सारी तुम्हारी महज़ बातों की हैं।
#काफ़िर
खुदाई
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