जिनसे मन की बात कही, उन सबसे धोखा खाया माँ! "छल प् | हिंदी कविता

"जिनसे मन की बात कही, उन सबसे धोखा खाया माँ! "छल प्रपंच से भरी है दुनिया", ये क्यों नहीं सिखाया माँ! मन में कुछ और मुँह पर कुछ, ये करना ना आया माँ! पाठ मुझे दुनियादारी का तुमने नहीं सिखाया माँ! सब अपने जैसे दिखते हैं, कैसे मैं पहचान करूँ? किस रिश्ते से मुंह मोडूँ मैं, किसका मैं सम्मान करूं? आँखे नम हैं, सिर भारी है, आकर तुम सहलाओ माँ! मैं फिर से बच्ची बन जाऊँ, पास मेरे आ जाओ माँ! ©रश्मि बरनवाल "कृति""

 जिनसे मन की बात कही, उन सबसे धोखा खाया माँ!
"छल प्रपंच से भरी है दुनिया", ये क्यों नहीं सिखाया माँ!

मन में कुछ और मुँह पर कुछ, ये करना ना आया माँ!
पाठ मुझे दुनियादारी का तुमने नहीं सिखाया माँ!

सब अपने जैसे दिखते हैं, कैसे मैं पहचान करूँ?
किस रिश्ते से मुंह मोडूँ मैं, किसका मैं सम्मान करूं?

आँखे नम हैं, सिर भारी है, आकर तुम सहलाओ माँ!
मैं फिर से बच्ची बन जाऊँ, पास मेरे आ जाओ माँ!

©रश्मि बरनवाल "कृति"

जिनसे मन की बात कही, उन सबसे धोखा खाया माँ! "छल प्रपंच से भरी है दुनिया", ये क्यों नहीं सिखाया माँ! मन में कुछ और मुँह पर कुछ, ये करना ना आया माँ! पाठ मुझे दुनियादारी का तुमने नहीं सिखाया माँ! सब अपने जैसे दिखते हैं, कैसे मैं पहचान करूँ? किस रिश्ते से मुंह मोडूँ मैं, किसका मैं सम्मान करूं? आँखे नम हैं, सिर भारी है, आकर तुम सहलाओ माँ! मैं फिर से बच्ची बन जाऊँ, पास मेरे आ जाओ माँ! ©रश्मि बरनवाल "कृति"

#2023Recap

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