खुल्लम खुला जग भ्रमण 'की चाहत है। इश्क़ में भी | हिंदी Shayari

"खुल्लम खुला जग भ्रमण 'की चाहत है। इश्क़ में भी अब आरक्षण की चाहत है। हार चुके हैं कष्टों से इस दुनिया के। दीवानों को संरक्षण 'की चाहत है। अपनी जान हथेली पर ले आए हम। आप से भी अब कुछ अर्पण की चाहत है। जिस दानव ने निगला प्यारी बेटी को। उस 'दानव के 'अब भक्षण की चाहत। ऐसा 'भाया रूप तिरा ऐ 'जान -ए- मन। मन 'में तेरे रुप हरण की चाहत है। तेरे निकट में आया जब से ऐ जगती। तब से मन में 'तेरी शरण 'की चाहत है। देख के जिसको बन जाए किरदार शुभम। अब तो 'ऐसे ही दर्पण की चाहत है।"

 खुल्लम  खुला  जग  भ्रमण 'की चाहत है।
इश्क़  में  भी  अब  आरक्षण की चाहत है।

हार   चुके   हैं   कष्टों  से  इस  दुनिया  के।
दीवानों    को    संरक्षण   'की   चाहत  है।

अपनी   जान   हथेली  पर  ले  आए  हम।
आप से भी अब कुछ अर्पण की चाहत है।

जिस  दानव  ने  निगला  प्यारी  बेटी  को।
उस  'दानव   के 'अब  भक्षण  की  चाहत।

ऐसा 'भाया  रूप  तिरा  ऐ  'जान -ए- मन।
मन  'में   तेरे   रुप  हरण   की   चाहत  है।

तेरे  निकट  में  आया  जब  से  ऐ जगती।
तब  से  मन  में 'तेरी  शरण 'की चाहत है।

देख के जिसको बन जाए किरदार शुभम।
अब   तो   'ऐसे  ही  दर्पण  की  चाहत  है।

खुल्लम खुला जग भ्रमण 'की चाहत है। इश्क़ में भी अब आरक्षण की चाहत है। हार चुके हैं कष्टों से इस दुनिया के। दीवानों को संरक्षण 'की चाहत है। अपनी जान हथेली पर ले आए हम। आप से भी अब कुछ अर्पण की चाहत है। जिस दानव ने निगला प्यारी बेटी को। उस 'दानव के 'अब भक्षण की चाहत। ऐसा 'भाया रूप तिरा ऐ 'जान -ए- मन। मन 'में तेरे रुप हरण की चाहत है। तेरे निकट में आया जब से ऐ जगती। तब से मन में 'तेरी शरण 'की चाहत है। देख के जिसको बन जाए किरदार शुभम। अब तो 'ऐसे ही दर्पण की चाहत है।

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