हिंदी आज भी संघर्ष की भाषा है, युग बीते पर हिंदी ह

"हिंदी आज भी संघर्ष की भाषा है, युग बीते पर हिंदी हाशिए पर पड़ी रही, आज भी पुस्तकों के मेले में,हिंदी खुद को टाट पर टिमटिमाती हुई पीली रोशनी के बीच पाती है, और ब्रितानी इंग्लिश ने अपने लिए तीन मंजिला! मकान बना लिए हैं! आलम ये है जैसा संसार वैसा श्रृंगार, अंग्रेज़ी नई बात कहती है,युवा खूब रीझते है, हाथ में एक अंग्रेजी की क़िताब FOMO से बचाती है, अरे !भाई अंग्रेज़ी नवीनीकरण की उदाहरण है ! और हिंदी साहित्य दबी,और छायावादी ढंग से अपनी पेशी लगाती है, डर ये भी है कन्ही जोर से आवाज़ दी तो रही सही क़मर भी तोड़ दी जाएगी ! मैं भी कुछ पल द्वंद में था की woke बनूं या यथार्थ चुनूं ? तभी नज़र एक ओर पड़े परसाई जी पर आ ठहरी ! अंग्रेजीदा लोगों के बीच मैंने व्यंग चुना और आवाज़ लगाईं "how much for this?". गौरतलब हो सारी हिंदीनुमा थकी नज़रे किताबें छोड़ तनी भृकुटी से मेरी ओर हुई और मुस्कुराते हुए किताबें टटोलने लगी. भीड़ अब भी अंग्रेज़ी की ओर ही थी, शायद थोड़ी परेशान भी, बस मैं और कुछ हिंदी पसंद लोग मुस्कुरा रहे थे, उन्हें पता था इस मीठे व्यंग का जवाब अंग्रेज़ी में नहीं है.! मैं गलत था हिंदी संघर्ष की नहीं संवाद की खूबसूरत भाषा है । ©sukhwant kumar saket"

 हिंदी आज भी संघर्ष की भाषा है,
युग बीते पर हिंदी हाशिए पर पड़ी रही,
आज भी पुस्तकों के मेले में,हिंदी खुद को टाट पर टिमटिमाती हुई पीली रोशनी के बीच पाती है,
और ब्रितानी इंग्लिश ने अपने लिए तीन मंजिला! मकान बना लिए हैं!
आलम ये है जैसा संसार वैसा श्रृंगार,
अंग्रेज़ी नई बात कहती है,युवा खूब रीझते है,
हाथ में एक अंग्रेजी की क़िताब FOMO से बचाती है, अरे !भाई अंग्रेज़ी नवीनीकरण की उदाहरण है ! 
और हिंदी साहित्य दबी,और छायावादी ढंग से अपनी पेशी लगाती है,
डर ये भी है कन्ही जोर से आवाज़ दी तो रही सही क़मर भी तोड़ दी जाएगी ! 

मैं भी कुछ पल द्वंद में था की woke बनूं या यथार्थ चुनूं ?
तभी नज़र एक ओर पड़े परसाई जी पर आ ठहरी !
अंग्रेजीदा लोगों के बीच मैंने व्यंग चुना और आवाज़ लगाईं "how much for this?".
गौरतलब हो सारी हिंदीनुमा थकी नज़रे किताबें छोड़ तनी भृकुटी से मेरी ओर हुई और मुस्कुराते हुए किताबें टटोलने लगी.

भीड़ अब भी अंग्रेज़ी की ओर ही थी, शायद थोड़ी परेशान भी,
 बस मैं और  कुछ हिंदी पसंद लोग मुस्कुरा रहे थे, उन्हें पता था इस मीठे व्यंग का जवाब अंग्रेज़ी में नहीं है.!

मैं गलत था हिंदी संघर्ष की नहीं संवाद की खूबसूरत भाषा है ।

©sukhwant kumar saket

हिंदी आज भी संघर्ष की भाषा है, युग बीते पर हिंदी हाशिए पर पड़ी रही, आज भी पुस्तकों के मेले में,हिंदी खुद को टाट पर टिमटिमाती हुई पीली रोशनी के बीच पाती है, और ब्रितानी इंग्लिश ने अपने लिए तीन मंजिला! मकान बना लिए हैं! आलम ये है जैसा संसार वैसा श्रृंगार, अंग्रेज़ी नई बात कहती है,युवा खूब रीझते है, हाथ में एक अंग्रेजी की क़िताब FOMO से बचाती है, अरे !भाई अंग्रेज़ी नवीनीकरण की उदाहरण है ! और हिंदी साहित्य दबी,और छायावादी ढंग से अपनी पेशी लगाती है, डर ये भी है कन्ही जोर से आवाज़ दी तो रही सही क़मर भी तोड़ दी जाएगी ! मैं भी कुछ पल द्वंद में था की woke बनूं या यथार्थ चुनूं ? तभी नज़र एक ओर पड़े परसाई जी पर आ ठहरी ! अंग्रेजीदा लोगों के बीच मैंने व्यंग चुना और आवाज़ लगाईं "how much for this?". गौरतलब हो सारी हिंदीनुमा थकी नज़रे किताबें छोड़ तनी भृकुटी से मेरी ओर हुई और मुस्कुराते हुए किताबें टटोलने लगी. भीड़ अब भी अंग्रेज़ी की ओर ही थी, शायद थोड़ी परेशान भी, बस मैं और कुछ हिंदी पसंद लोग मुस्कुरा रहे थे, उन्हें पता था इस मीठे व्यंग का जवाब अंग्रेज़ी में नहीं है.! मैं गलत था हिंदी संघर्ष की नहीं संवाद की खूबसूरत भाषा है । ©sukhwant kumar saket

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