मौत ही थी...आ.आ जाती...क्या फर्क पड़ता है... मर मर | हिंदी शायरी

"मौत ही थी...आ.आ जाती...क्या फर्क पड़ता है... मर मर के ही जी रहे थे उनकी यादों में ... आज मर ...ही जाते ...क्या फर्क पड़ता है... वो इल्ज़ाम बेवफाई का हम पर लगा रही... खुद रकीब के साथ ...पर..क्या फर्क पड़ता है... दर्द तो पहले ही बहुत दे चुकी... थोड़ा और ...दे गई ...क्या फर्क पड़ता है..."

 मौत ही थी...आ.आ जाती...क्या फर्क पड़ता है...
मर मर के ही जी रहे थे  उनकी यादों में ...
आज मर ...ही जाते ...क्या फर्क पड़ता है...

वो इल्ज़ाम बेवफाई का हम पर लगा रही...
खुद रकीब के साथ ...पर..क्या फर्क पड़ता है...
दर्द तो पहले ही बहुत दे चुकी...
थोड़ा और ...दे गई ...क्या फर्क पड़ता है...

मौत ही थी...आ.आ जाती...क्या फर्क पड़ता है... मर मर के ही जी रहे थे उनकी यादों में ... आज मर ...ही जाते ...क्या फर्क पड़ता है... वो इल्ज़ाम बेवफाई का हम पर लगा रही... खुद रकीब के साथ ...पर..क्या फर्क पड़ता है... दर्द तो पहले ही बहुत दे चुकी... थोड़ा और ...दे गई ...क्या फर्क पड़ता है...

मौत ही थी...आ.आ जाती...क्या फर्क पड़ता है...
मर मर के ही जी रहे थे उनकी यादों में ...
आज मर ...ही जाते ...क्या फर्क पड़ता है.

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