छत
तेरी कीमत पता चली,
जब रहकर आए,
एक शहर में
जहां तू न मिली।
तेरे जमीं तले,
खुले आसमां के नीचे,
कितनी कहानियां बुनी,
अनगिनत किरदारों से मिली।
गर्मी, सर्दी, बरखा,
भोर, सांझ, धूप, छाँव,
नूतन रंग ढंग में,
तेरे जरिए सबसे मिली।
कितनी यादें समेटूं
कितने अफसानें फिर लिखूं,
क्षण भर के लिए अब,
एक लंबे अंतराल बाद तुझसे जो मिली।
©Ruchi Jha
#roof #Memories #hindi_poetry #hindi_poem #Hindi