खुली दिल की दुकान, हुस्न बाजार हुआ।
धड़कनें दिल की बढ़ी,तुमसे प्यार हुआ।
हुस्न की आग में , दिल ये पिघलने लगा।
दूर इक दूजे से न रहने का इसरार हुआ।
मुलाकातों का सिलसिला फिर चलने लगा।
आंखों आंखों में ,जाने कब इकरार हुआ।
ज़माने की नजरों से बचाकर,हम मिलने लगे
दिल पल पल मिलने को तुमसे बेकरार हुआ।
इस आग के दरिया में ,जब डूब गये हम
मामला दिल का नश्तर सरेबाजार हुआ।
सुरिंदर कौर
©Gehre Alfaz
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