पैरों को मेरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है जंजीर की सूरत मुझे घर बाँधे हुए है।
हर चेहरे में आता है नजर एक ही चेहरा लगता है कोई मेरी नजर बाँधे हुए है।
बिछडेंगे तो मर जाऐंगे हम दोंनो बिछड़कर इक डोर से हमको यही डर बाँधे हुए है।
आँखें तो उसे घर से निकलने नहीं देतीं आँसू है कि सामान ए सफर बाँधे हुए है।
हम हैं कि कभी जब्त का दामन नहीं छोड़ा दिल है कि धड़कने पे कमर बाँचे हुए है। 'हुए'
फेंकीन मुनव्वर ने बुजुर्गों की निशानी दस्तार पुरानी है मगर बाँधे हुए है।
©Ashraf K7
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