Alone कभी उन रास्तों पर मेरा जाना नहीं हुआ
दीवानगी तो कि पर दीवाना नहीं हुआ
चर्चे मोहब्बतों के हुए हैं तमाम उम्र
चर्चों में उनके नाम का आना नहीं हुआ
बे-मिस्ल इख़्तियार हमने तो कर लिया
उनसे अभी भी एक अफ़साना नहीं हुआ
करती ये दुनिया उनकी सदाक़त को भी सलाम
हम शम्मा हुए जैसे वो परवाना नहीं हुआ
Mirza तुम्हारी ग़ज़्ल हो रद्द ए अमल वो हो
खुदगर्ज़ अभी इतना तो ज़माना नहीं हुआ
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Mirza
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