Alone कभी उन रास्तों पर मेरा जाना नहीं हुआ दीवानग | हिंदी शायरी

"Alone कभी उन रास्तों पर मेरा जाना नहीं हुआ दीवानगी तो कि पर दीवाना नहीं हुआ चर्चे मोहब्बतों के हुए हैं तमाम उम्र चर्चों में उनके नाम का आना नहीं हुआ बे-मिस्ल इख़्तियार हमने तो कर लिया उनसे अभी भी एक अफ़साना नहीं हुआ करती ये दुनिया उनकी सदाक़त को भी सलाम हम शम्मा हुए जैसे वो परवाना नहीं हुआ Mirza तुम्हारी ग़ज़्ल हो रद्द ए अमल वो हो खुदगर्ज़ अभी इतना तो ज़माना नहीं हुआ . Mirza"

 Alone  कभी उन रास्तों पर मेरा जाना नहीं हुआ
दीवानगी तो कि पर  दीवाना नहीं हुआ

चर्चे  मोहब्बतों  के हुए हैं  तमाम उम्र
चर्चों में उनके नाम का आना नहीं हुआ

बे-मिस्ल इख़्तियार  हमने तो कर लिया
उनसे अभी भी एक अफ़साना नहीं हुआ

करती ये दुनिया उनकी सदाक़त को भी सलाम
हम  शम्मा हुए  जैसे वो  परवाना  नहीं हुआ

Mirza तुम्हारी ग़ज़्ल हो रद्द ए अमल वो हो
खुदगर्ज़  अभी इतना  तो ज़माना  नहीं हुआ
.
Mirza

Alone कभी उन रास्तों पर मेरा जाना नहीं हुआ दीवानगी तो कि पर दीवाना नहीं हुआ चर्चे मोहब्बतों के हुए हैं तमाम उम्र चर्चों में उनके नाम का आना नहीं हुआ बे-मिस्ल इख़्तियार हमने तो कर लिया उनसे अभी भी एक अफ़साना नहीं हुआ करती ये दुनिया उनकी सदाक़त को भी सलाम हम शम्मा हुए जैसे वो परवाना नहीं हुआ Mirza तुम्हारी ग़ज़्ल हो रद्द ए अमल वो हो खुदगर्ज़ अभी इतना तो ज़माना नहीं हुआ . Mirza

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