सुना है कभी तुमने मेरी ख़ामोशी में अपने प्रेम को!

"सुना है कभी तुमने मेरी ख़ामोशी में अपने प्रेम को! कभी पढ़ा है क्या मेरी चुप्पी में बोलती आंखों को! समझा है क्या कभी तुम्हारी छुअन से मेरे सहमते जिस्म को! देखो ना कभी, जो लकीर तुम्हें खुश देख कर बढ़ जाती है होठों पर.. महसूस करो जो धड़कन रुक जाती है तुम्हारे ना होने पर!! सुनो ना कभी मेरी ख़ामोशी में अपने प्रेम को.... ©Lady Gulzar"

 सुना है कभी तुमने 
मेरी ख़ामोशी में अपने प्रेम को!
कभी पढ़ा है क्या 
मेरी चुप्पी में 
बोलती आंखों को!
समझा है क्या कभी 
तुम्हारी छुअन से 
मेरे सहमते जिस्म को!
देखो ना कभी, जो लकीर
तुम्हें खुश देख कर बढ़ जाती है होठों पर..
महसूस करो जो धड़कन रुक जाती है 
तुम्हारे ना होने पर!!
सुनो ना कभी मेरी ख़ामोशी में 
अपने प्रेम को....

©Lady Gulzar

सुना है कभी तुमने मेरी ख़ामोशी में अपने प्रेम को! कभी पढ़ा है क्या मेरी चुप्पी में बोलती आंखों को! समझा है क्या कभी तुम्हारी छुअन से मेरे सहमते जिस्म को! देखो ना कभी, जो लकीर तुम्हें खुश देख कर बढ़ जाती है होठों पर.. महसूस करो जो धड़कन रुक जाती है तुम्हारे ना होने पर!! सुनो ना कभी मेरी ख़ामोशी में अपने प्रेम को.... ©Lady Gulzar

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