ग़ज़ल
गिरा कौन कितना बताना बहुत है ।
ये उँगली उन्हें भी दिखाना बहुत है ।।
जो रूठे हैं उनको मनाना बहुत है ।।
गरीबों को सारे हँसाना बहुत है ।।
ये जादू कलम का दया शारदे की ।
चलाकर इसे अब दिखाना बहुत है ।।
निभाना नहीं हो जिन्हें यार रिश्ते ।
दिखा पास उनके बहाना बहुत है ।।
जरा पास ठहरो हमारे अभी तुम ।
अभी यार तुमको सुनाना बहुत है ।।
तू रोना नहीं सामने अब किसी के ।
अभी दर खुदा के ठिकाना बहुत है ।।
पता तो करो रूठी क्यों आज राधा ।
कन्हैया को उनको मनाना बहुत है ।।
बचे हैं अधूरे बहुत काम तेरे ।
प्रखर कल तुम्हें दूर जाना बहुत है ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल
गिरा कौन कितना बताना बहुत है ।
ये उँगली उन्हें भी दिखाना बहुत है ।।
जो रूठे हैं उनको मनाना बहुत है ।।
गरीबों को सारे हँसाना बहुत है ।।
ये जादू कलम का दया शारदे की ।