शायद कोई कारण था
वो न नहीं कह पाती थी
कटु वचन व यातना सारे
हो मौन सहती जाती थी
गर्म अश्को के छालों को
वो आँचल में छुपाती थी
महफ़िलों सी भीड़ में वो
कोने में दुबक जाती थी
शोर करती समंदर सी वो
नाले में बदलती जाती थी
कई वर्षों बाद मिली उसे
वो चीखती-चिल्लाती थी
कभी जोरों से हंसने लगती
वो कभी नाचती गाती थी
शायद कोई कारण था
वो अकेले में बड़बड़ाती थी।
©अलका मिश्रा
©alka mishra
#Alive