तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर, में किसी पुल की तरह | हिंदी Poetry

"तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर, में किसी पुल की तरह थर थराता हु। तेरी यादों के रेलवे स्टेशन पर, मैं बस एक यात्री हु, बेमान हु, तुझे खोने का डर सदा साथ चलता है। किसी तड़के में खो जाऊं, ये ख्वाब सदा मेरे मन को बसाता है। तेरी बातों की झगड़ों के सवालों में, मैं खो जाता हूँ और फिर ढूंढता हूँ, कुछ ऐसे लम्हों को, जिन्हें हमने साथ बिताया। तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर, में किसी पुल की तरह थर थराता हु। तेरी यादों के रेलवे स्टेशन पर, मैं बस एक यात्री हु, बेमान हु, तुझे पाने का इंतज़ार सदा चलता है। तुझे पाने की होड़ में, मैं सदा बिना रुके दौड़ता हूँ, तेरे पास पहुँचने का ख्वाब सदा मेरा साथ देता है। तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर, में किसी पुल की तरह थर थराता हु। ©Aditya Vardhan Gandhi"

 तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर,
में किसी पुल की तरह थर थराता हु।

तेरी यादों के रेलवे स्टेशन पर,
मैं बस एक यात्री हु, बेमान हु,
तुझे खोने का डर सदा साथ चलता है।

किसी तड़के में खो जाऊं,
ये ख्वाब सदा मेरे मन को बसाता है।

तेरी बातों की झगड़ों के सवालों में,
मैं खो जाता हूँ और फिर ढूंढता हूँ,
कुछ ऐसे लम्हों को, जिन्हें हमने साथ बिताया।

तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर,
में किसी पुल की तरह थर थराता हु।

तेरी यादों के रेलवे स्टेशन पर,
मैं बस एक यात्री हु, बेमान हु,
तुझे पाने का इंतज़ार सदा चलता है।

तुझे पाने की होड़ में,
मैं सदा बिना रुके दौड़ता हूँ,
तेरे पास पहुँचने का ख्वाब सदा मेरा साथ देता है।

तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर,
में किसी पुल की तरह थर थराता हु।

©Aditya Vardhan Gandhi

तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर, में किसी पुल की तरह थर थराता हु। तेरी यादों के रेलवे स्टेशन पर, मैं बस एक यात्री हु, बेमान हु, तुझे खोने का डर सदा साथ चलता है। किसी तड़के में खो जाऊं, ये ख्वाब सदा मेरे मन को बसाता है। तेरी बातों की झगड़ों के सवालों में, मैं खो जाता हूँ और फिर ढूंढता हूँ, कुछ ऐसे लम्हों को, जिन्हें हमने साथ बिताया। तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर, में किसी पुल की तरह थर थराता हु। तेरी यादों के रेलवे स्टेशन पर, मैं बस एक यात्री हु, बेमान हु, तुझे पाने का इंतज़ार सदा चलता है। तुझे पाने की होड़ में, मैं सदा बिना रुके दौड़ता हूँ, तेरे पास पहुँचने का ख्वाब सदा मेरा साथ देता है। तू किसी रेल की तरह गुजरती ओर, में किसी पुल की तरह थर थराता हु। ©Aditya Vardhan Gandhi

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