मैं खुद की तलाश में थोड़ा सुकून चाहती हूँ। कभी -कभ | हिंदी मोटिवेशनल

"मैं खुद की तलाश में थोड़ा सुकून चाहती हूँ। कभी -कभी बस चुप रहना चाहती हूँ। मेरे अंदर का अंतरद्वन्द इक तूफान सा लगता है मैं उससे बाहर आना चाहती हूँ। मेरी हँसी को तो सब पढ़ ही लेते हैं मैं अपना दर्द अब बाहर लाना चाहती हूँ। शांत सी दिखने वाली नदी में भी एक शोर है मैं उस नदी को समंदर से मिलाना चाहती हूँ। मेरे हिस्से में कितने दर्द लिखें हैं अभी और जिंदगी मैं भी तुम्हें आजमाना चाहती हूँ। सपना परिहार ✍🏻 ©Sapna Parihar"

 मैं खुद की तलाश में 
थोड़ा सुकून चाहती हूँ।
कभी -कभी बस 
चुप रहना चाहती हूँ।
मेरे अंदर का अंतरद्वन्द 
इक तूफान सा लगता है 
मैं उससे बाहर आना चाहती हूँ।
मेरी हँसी को तो सब 
पढ़ ही लेते हैं 
मैं अपना दर्द अब 
बाहर लाना चाहती हूँ।
शांत सी दिखने वाली 
नदी में भी एक शोर है
मैं उस नदी को समंदर से 
मिलाना चाहती हूँ।
मेरे हिस्से में कितने 
दर्द लिखें हैं अभी और 
जिंदगी मैं भी तुम्हें 
आजमाना चाहती हूँ।

सपना परिहार ✍🏻

©Sapna Parihar

मैं खुद की तलाश में थोड़ा सुकून चाहती हूँ। कभी -कभी बस चुप रहना चाहती हूँ। मेरे अंदर का अंतरद्वन्द इक तूफान सा लगता है मैं उससे बाहर आना चाहती हूँ। मेरी हँसी को तो सब पढ़ ही लेते हैं मैं अपना दर्द अब बाहर लाना चाहती हूँ। शांत सी दिखने वाली नदी में भी एक शोर है मैं उस नदी को समंदर से मिलाना चाहती हूँ। मेरे हिस्से में कितने दर्द लिखें हैं अभी और जिंदगी मैं भी तुम्हें आजमाना चाहती हूँ। सपना परिहार ✍🏻 ©Sapna Parihar

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