सपने जो ऊकेरे थे कागज़ में मैंने खुद के लिए कश्ती ब | हिंदी शायरी

"सपने जो ऊकेरे थे कागज़ में मैंने खुद के लिए कश्ती बनकर डूब गए वों जिम्मेदारियों की बारिश में। ©Shobhit Saxena"

 सपने जो ऊकेरे थे कागज़ में मैंने खुद के लिए
कश्ती बनकर डूब गए वों जिम्मेदारियों की बारिश में।

©Shobhit Saxena

सपने जो ऊकेरे थे कागज़ में मैंने खुद के लिए कश्ती बनकर डूब गए वों जिम्मेदारियों की बारिश में। ©Shobhit Saxena

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