जगत कृष्णमय हुआ और रवि ने बांसुरी बजायी।
किरणों ने फिर रास रचा घर घर आवाज़ लगायी।
वंशी सुनकर दिनकर की हो पुलकित रम्या धरणी,
सकुचाए लोचन, स्मित आनन से मन में मुस्कायी।
त्याग तिमिर का वसन प्रकृति ने हरीतिमा है ओढ़ी।
कण कण भर उल्लास, तरंगिणि ने काया लचकायी।
थाप मृदंग सुनी मारुत की, झूमे कुसुमित उपवन।
जागा वैभव सकल, कृष्ण की जन्म अष्टमी आयी।
अंजलि राज
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