"Life Like गर्दिश में सम्भलने का हुनर सीख रहें हैं।
हम वक्त बदलने का हुनर सीख रहें हैं।
उतका गये है खेल-ए-सियासी से दरअसल।
हम जंग-ए-रियासत में बसर सीख रहें हैं।
रुकने नहीं देता हमें दुश्वारियों में वो।
एक नाम तेरा लेके ज़फ़र सीख रहें हैं।
चेहरे पे मुखौटा नहीं आता है लगाना।
आईने से अब ज़ौक़-ए-नज़र सीख रहें हैं।
#WORLD POETRY DAY
©संवेदिता "सायबा"
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