"एक गुज़रा हुआ दौर था ,जब हर तरफ़ किताबों का ही शोर था,
हर जिज्ञासु शख़्स का मस्तिष्क , बस किताबों की ही ओर था,
अब पूछती हैं किताबें , कि कहाँ गया वक़्त वो हमारे ज़माने का,
हम ही सर्वोपरि थी सफ़लता के , हर एक पैमामे का,
हम तो बस शो केस का ,एक हिस्सा बनकर रह गई,
बीती हुई यादों का , बस हम क़िस्सा बनकर रह गई,
रोती हैं बिलखती हैं अपनी इस बेवज़ह सी नजरअंदाजी पर,
ढाँढस बंधा लेती हैं ख़ुद ही , एक दूसरे की उदासी पर।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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